Saturday 10 February 2018

भाग -1


    खण्ड 1 
     दस आज्ञा 
        पहली आज्ञा
  परमेश्वर तेरा ईश्वर मैं हूँ किसी दुसरे को ईश्वर मत मान ।
       इसका क्या अर्थ है ?
  हम सब वस्तुओं से अधिक ईश्वर का भय, प्रेम और भरोसा रखें ।

       दूसरी आज्ञा 
  किसी प्रकार की मूर्ति पूजा मत कर ।
     इसका क्या अर्थ है ?
  हम ईश्वर का भय और प्रेम रखें ।
  हम किसी बनाई हुई वस्तु की पूजा- सेवा न करें ,न उसका नाम लें न उसके सामने झुकें ।
   कयोंकि ईश्वर आत्मा है और अवश्य है, की उसके भजन करने वाले आत्मा और सच्चाई से भजन करें ।
 
        तीसरी आज्ञा 
  परमेश्वर अपने ईश्वर का नाम अकारथ मत ले, कयोंकि ईश्वर, उसको जो उसका नाम अकारथ लेता है, निर्दोषी न ठहराएगा  । 
       इसका क्या अर्थ है ?
        हम ईश्वर का भय और प्रेम रखें  ।
   हम उसके नाम से श्राप ना दें,  न किरिया खाएं, न टोना ओझाई करें ,न झूठ बोलें ,न ठगें  ।
       परन्तु सब बिपत्तिओं में उसकी दुहाई, बिन्ती, स्तुति और धन्यवाद करें  ।
 
       चौथी आज्ञा 
    बिश्रामवार को पवित्र रखने के लिए मत भूल  । 
       इसका क्या अर्थ है ?
     हम ईश्वर का भय और प्रेम रखें  ।
    हम उसका वचन और धर्मोपदेश को तुच्छ न करें , परन्तु पवित्र मानकर आनंद से सुने और सीखें  ।
   
   
      पांचवीं आज्ञा 
  अपने माता-पिता का आदर कर, जिससे तेरा भला हो और पृथ्वी पर तेरा जीवन अधिक हो  । 
        इसका क्या अर्थ है ? 
        हम ईश्वर का भय और प्रेम रखें  ।
    हम अपने माता-पिता और स्वामियों का अपमान ना करें, न ही उनको क्रोधित करें  ।
      परन्तु उनका सम्मान और सेवा करें , आज्ञा मानें और उनको प्यार करें  ।

       छठवीं आज्ञा 
     मनुष्य हत्या मत कर  । 
       इसका क्या अर्थ है ? 
    हम ईश्वर का भय और प्रेम रखें  ।
    हम अपने पड़ोसी की देह और प्राण को किसी प्रकार की हानि और दुःख ना पहुँचाएँ , परन्तु देह और प्राण की बिपत्ति में उसकी सहायता और भलाई करें  ।
 
       सातवीं आज्ञा 
     व्याभिचार मत कर  । 
     इसका क्या अर्थ है ?
   हम ईश्वर का भय और प्रेम रखें  ।
   हम अपने मन, वचन और कर्म में शुद्ध और संयमी होकर जीवन बिताएं और हरएक स्त्री-पुरुष , परस्पर प्रेम और आदर करें  ।
 
       आठवीं आज्ञा 
       चोरी मत कर  । 
      इसका क्या अर्थ है ?
   हम ईश्वर का भय और प्रेम रखें  ।
   हम अपने पड़ोसी का धन-सम्पत्ति न छिन्नें ,ना छल कपट से अथवा अनैतिक रूप से उसकी सम्पत्ति को अपनाकर भ्रष्ट बने ,परन्तु उसके धन-सम्पत्ति और जीविका की वृद्धि और रक्षा में सहायता करें  ।
         नौवीं आज्ञा 
     अपने पडोसी पर झूठी साक्षी मत दे  । 
     इसका क्या अर्थ है ? 
    हम ईश्वर का भय और प्रेम रखें  ।
   हम अपने पडोसी से झूठ ना बोलें, ना उसका भेद खोलें ना चुगली, ना मिथ्या अपवाद करें, परन्तु जहाँ तक बन पड़े उसका पक्ष लें, उसका आदर आदर करें और यत्न से उसको भला ठहराएं  ।

          दसवीं  आज्ञा 
  अपने पड़ोसी के घर और उसके परिवार का लालच मत कर  ।
        इसका क्या अर्थ है ?
   हम ईश्वर का भय और प्रेम रखें  ।
   हम अपने पड़ोसी के घर द्वार , खेत और मवेशियों पर लोभ की दृष्टी ना रखें, ना बहाना करके उनको अपनाएं ना उसकी स्त्री , दास- दासी को फुसलाएं  या बिगाड़ें , परन्तु यत्न करें की जो कुछ
उसका है, कुशल से उसके पास रहे और उसके कम आये  ।
                   ईश्वर इन सब आज्ञाओं के विषय में क्या कहता है ?
   ईश्वर यों कहता है, की मैं परमेश्वर तेरा प्रभु ज्वलित ईश्वर हूँ ।मैं पुर्बजों के अपराध का दण्ड , उनके पुत्रों को, जो मुझ से बैर रखते हैं, उनकी तीसरी और चौथी पीढ़ी तक देता हूँ  । परन्तु सहस्रों , पर
    जो मुझे प्यार करते और मेरी आज्ञाओं का पालन करते हैं, मैं दया करता हूँ  ।
                             इसका क्या अर्थ है ? 
    ईश्वर उन सभों को दण्ड देने के लिए धमकता है, जो उसकी आज्ञाओं का उलंघन करते हैं , इसलिए हम ईश्वर के क्रोध से डरें और उसकी आज्ञाओं का बिरोध ना करें  ।
   फिर वह अपने अनुग्रह और सारी भलाई की प्रतिज्ञा उन सभों को देता है, जो इन आज्ञाओं को मानते हैं, इसलिए हम उसको प्यार भी करें, उस पर भरोसा  रखें और आनंद से उसकी आज्ञाओं का पालन करें  ।

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