Saturday 10 February 2018

भाग -1

          खण्ड -3
       प्रभु की प्रार्थना  
     हे हमारे पिता ,तू जो स्वर्ग में है । 
          इसका क्या अर्थ है ? 
  इस प्रवेशन के द्वारा ईश्वर प्रेम से हमको प्रेरित करता है , की हम निश्चय विश्वास करें , की वह हमरा सच्चा पिता है और हम उसकी सच्ची संतान हैं ।
         जिसमे हम भरोसा और साहस के साथ उससे निबदन करें जैसे प्रिये बच्चे कुछ संदेह न करके अपने माता-पिता से किसी बात का निबेदन करते हैं ।
                       
                   पहली बिनती 
             तेरा नाम पवित्र किया जाए ।
 
         इसका क्या अर्थ है ?
    ईश्वर का नाम तो आप ही पवित्र है, परन्तु हम इस बिनती में मांगते हैं , की वह हमारे बीच में पवित्र किया जाए ।
        यह कैसे होता है ?
जब ईश्वर का वचन निर्मल और निष्कपट रीती से सिखाया जाता है और हम ईश्वर के संतानों के समान उसके अनुसार धार्मिकता से जीते हैं  । हे प्रिय , स्वर्गवासी पिता हमारी सहायता कर कि ऐसा ही हो ।
  परन्तु जो ईश्वर के वचन को भित्र सिखाते और जीते हैं , वे हमारे बीच में ईश्वर के नाम को अपवित्र करते हैं, हे स्वर्गवासी पिता, उनसे हमको बचा ।
                       
                दूसरी बिनती 
                   तेरा राज्य आए । 
  ईश्वर का राज्य हमारे निबेदन के बिना आप से तो आता है परन्तु हम इस बिनती में मांगते हैं कि वह हमारे पास भी पहुंचे ।
                              यह कैसे होता है ?
 जब स्वर्गवासी पिता हमको अपना पवित्र आत्मा देता है , कि हम उसके अनुग्रह के द्वारा उसके पवित्र वचन पर विश्वास करें और जैसे इस काल में, वैसे ही अनंत कल में पवित्रता से जियें ।

               तीसरी  बिनती 
            तेरी इच्छा जैसे स्वर्ग में वैसे पृथ्वी पर भी हो ।
                  इसका क्या अर्थ है ? 
 ईश्वर की उत्तम और करुणामय इच्छा हमारे निवेदन के बिना भी होती है , परन्तु हम इस बिनती में मांगते हैं, कि वह हमारे बीच में भी हो ।
                  यह कैसे होता है ? 
 ईश्वर सब बुरे विचारों और शैतान के सांसारिक अभिप्रायों और हमारी इच्छाओं को, जो हमें ईश्वर के नाम को पवित्र करने और उसके राज्य को हमारे पास पहुचने नहीं देते हैं, उनको रोकता और भंग करता है , वरन अपने
वचन और विश्वास में हमारे जीवन के अंत तक हमारी दृढ़ रक्षा करता है । यही उसकी उत्तम और करुणामय इच्छा है ।
        चौथी  बिनती 
  हमारी प्रतिदिन की रोटी आज हमको दे ।
          इसका क्या अर्थ है ? 
 ईश्वर प्रतिदिन की रोटी हम सभों को , वरन बुरे लोगों को भी उनके मांगने के बिना देता है । परन्तु हम इस निवेदन में मांगते हैं कि वह हमें इस कृपा को जनाए और हमारी प्रतिदिन की रोटी धन्यवाद सहित ग्रहण करने दे ।
       
       प्रतिदिन की रोटी का क्या अर्थ है ? 
 इसका यह अर्थ है की सब कुछ जो हमारे प्रतिपालन के लिए आवश्यक है ,उसकी पूर्ति ईश्वर की ओर से होती है अर्थात् खाना-पीना , ओढ़ना-बिछौना , घर-द्वार , खेत-मवेशी, चीज-वस्तु, धन-संपत्ति, भक्त स्त्री-पुरुष , भक्त बच्चे , भक्त दास-दासी, भक्त और विश्वस्त शासक, राज्य की सुदशा, सुखदायक ऋतु , देश का कुशल चैन , आरोग्यता ,सुव्यवहार, मान, मर्यादा , सच्चे मित्र, विश्वस्त पड़ोसी, इत्यादि ।


           पांचवीं बिनती 
          और हमारे अपराधों को क्षमा कर, जैसे हम भी अपने अपराधिओं को क्षमा करते हैं ।
               इसका क्या अर्थ है ? 
  हम इस निवेदन में मांगते हैं, कि स्वर्गवासी पिता हमारे पापों पर दृष्टी ना करें और उसके कारण हमारी बिनती को अनसुनी ना करे, कयोंकि हम जो कुछ मांगते हैं , उसके योग्य हम नहीं ठहारते हैं । जौभी कि हम प्रतिदिन अनेक पाप करते और केवल दण्ड ही कमाते हैं , परन्तु वह हमको अपने अनुग्रह और भलाई में सब कुछ दे ऐसा निवेदन करते हैं ।
   हम भी मन से उनको क्षमा करेंगे, जो हमारे प्रति अपराध करते हैं और बुराई के बदले आनंद से भलाई करेंगे ।                           
             छटवीं   बिनती 
       और हमको परीक्षा में मत डाल । 
                 इसका क्या अर्थ है ? 
  ईश्वर तो किसी की परीक्षा नहीं करता है , परन्तु हम इस निवेदन में मांगते हैं, की वह आप हमारी रक्षा करके हमको संभाले , की शैतान, संसार और हमारा शरीर हमको ना ठगे, ना मिथ्या विश्वास, संदेह और निराशा में गिराए और दूसरे कठिन कुकर्म और बुराई में ना डाले , और हम ऐसी परीक्षाओं से  कितना ही व्याकुल  किये जाएँ तौभी ना गिर पड़ें, परन्तु अंत में जय प्राप्त करें ।
         
         सातवीं बिनती 
              परन्तु बुरे से छुड़ा । 
              इसका क्या अर्थ है ? 
  हम इस निवेदन में सब बिनतीयाँ मिला कर मांगते हैं , की हमारा स्वर्गवासी पिता हमको देह और प्राण, धन-संपत्ति और मर्यादा को सब हानी और जोखिम से बचाए और अन्त में जब मरने की घड़ी पहुंचे, तब धन्य मृत्यु प्रदान करे  और हमको अपने दयापूर्ण उपकार के द्वारा इस दुःख सागर से पार करके अपने पास स्वर्ग में ग्रहण करे ।

          आठवीं बिनती 
       कयोंकि राज्य और पराक्रम और महिमा सदा तेरे हैं, आमीन । 
                  आमीन । 
                  इसका क्या अर्थ है ? 
  हमको निश्चय हो कि ऐसी बिन्तियाँ हमारे स्वर्गवासी पिता के आगे ग्रह्वा होती हैं, कयोंकि उसने आप ही हमको आज्ञा दी है की हम इस प्रकार से मांगें और उसने सुनने की प्रतिज्ञा की है । आमीन, आमीन अर्थात सच, नि:संदेह ऐसा ही होगा ।

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